बेटियां फाउंडेशन की अनसुनी कहानी !- संघर्षमय जीवन

By socialnewslive.in Jan12,2020

मेरठ: बात 2015 की है रास्ते मे मैंने देखा, 5-6 साल के कुछ बच्चे कूड़े के बड़े ढेर पर बैठे कूड़ा बीन रहे थे उन बच्चों को देखकर तरस, पर कूड़े को देखकर घिन्न आई, सोचा कि इन बच्चों का क्या भविष्य है क्यों ईश्वर किसी को आलीशान घर किसी को कूड़े का ढेर देता है, मैंने कुछ प्रण लिया और उन बच्चों के लिए कुछ करने की कोशिश में उन्हीं की झोपड़ियों के पास अपने कुछ मित्रों के साथ पहुंची। जब उनसे  पढ़ने की बात कही तो उनके माता पिता ने हमारा ही मजाक बना दिया पर हमने भी ठान लिया था तो हर रोज नियत समय पर  सड़क पर एक किनारे जमीन पर बैठते और आसपास के सभी बच्चों को एकत्रित कर बाते करते। उनके साथ गेम्स खेलते, खाने को देते तो देखा बच्चे रोजाना हमसे पहले ही आ जाते। धीरे धीरे गेम्स खाने के साथ पढ़ाई का सिलसिला चालू किया। बच्चे मन लगाकर पढ़ने लगे। हमारे लिए रोज दो तीन घंटे निकालना और खाना व पढ़ने का सामान देना कठिन हो रहा था और बच्चों की संख्या भी 80 से अधिक हो गई थी  पर हमने भी हार नहीं मानी। तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद एक दिन हमारी सोच का परिणाम निकला कि 65 बच्चों का एक साथ एक  ही स्कूल में दाखिला कर दिया ये हमारे जीवन की एक बड़ी उपलब्धि थी। तब से आज तक हम सभी बच्चों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं कि कोई बच्चा स्कूल तो नहीं छोड़ रहा । हर साल नए बच्चों का एडमिशन कराया जाता है।

फिर हमने उन बच्चों को चिन्हित करना शुरू किया जो नशा करते थे मॉल के पास भीख मांगते व बाल श्रम करते थे। मॉल के निकट ही मेरा ऑफिस था एक दिन पीछे से दो बच्चों ने आवाज लगाई और भीख माँगी तो मैंने उन प्यारे से बच्चों को देखा और अपने साथ आने को कहा, उन्हें अपने ऑफिस में चेयर पर बैठने को कहा तो वे बोले कि ऑन्टी हम यहां बैठे आप डाटेंगी तो नही, उनसे पढ़ने को कहा तो तुरन्त तैयार हो गए, बोले हम रोज पढ़ेंगे घर मे हम जब पैसे नही देंगे तो बोल देंगे कि भीख मांगने पर सब मारते हैं बोले हम पुलिस बनेंगे और चोरी करने वालो को पकड़ेंगे। उनके नाम तमन्ना व कोहिनूर थे  उनको खाने के समान के साथ ही कॉपी पेंसिल भी दी।मैंने उनके अन्य साथियों के बारे में पूछा जो गिनती में 10-12 थे जिनमें ज्यादातर बच्चे नशा करने वाले थे। अब तो रोज नए नए बच्चे आने लगे। हर रोज वे नए बच्चों को साथ लाते जो बताते की नशा कहाँ व कितने का मिलता है।वे रोज मुझसे पढ़ रहे थे पर मैं उनको भीख मांगते हुए भी देखा करती थी मुझे देखकर वे डर कर भाग जाते थे  व माफी भी मांगते थे। एक दिन कोहिनूर ने कहा कि मुझे पैसा भी चाहिए घर पर बहन रोटी कैसे बनाएगी यदि हम भीख नही मांगेंगे । उसकी बात ने सोच में डाल दिया वह सही कह रहा था। हम मना करते हैं कि बाल श्रम या भीख मांगना गलत है पर इसका विकल्प उन लोगो के पास नही है और हमारे पास भी लिमिटेशनंस हैं तो क्या किया जाए। कोहिनूर ने कहा कि मैं बूटपोलिश अच्छी कर सकता हूं तो मैंने उसे कुछ सामान दिया कि भीख से अच्छा बाल श्रम है आगे इससे भी छुटकारा मिल जाएगा पर नशा करने वालो को सुधारना मुश्किल हो रहा था।अभी हमे बच्चों की सोच बदलनी थी।

यही सिलसिला आज तक चल रहा है।हम सभी बच्चों को जीवन भर नही कर सकते क्योंकि संसाधन हमारे पास नहीं हैं पर कुछ का भविष्य तो बना ही देंगे। तमन्ना जो खूबसूरत व समझदार बच्ची है उसको समाज मे एक पहचान देनी हैं। न जाने कितने झुग्गी झोपड़ियों के बच्चे स्कूल में व अन्य बच्चे कॉलेज तक पहुंच गए हैं। खुशी है ज़्यादा नही कुछ बच्चों का भविष्य तो अवश्य बन ही जायेगा।-अंजू पाण्डेय

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